जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मालिक का दिल्ली के RML अस्पताल में हुआ निधन

Vivek Rakshit - Author
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Satyapal Malik Death on Delhi’s RML Hospital

पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का मंगलवार, 12 जून 2025 को 79 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने नई दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में दोपहर करीब 1 बजे अंतिम सांस ली, जहां वे लंबे समय से किडनी से संबंधित बीमारी के इलाज के लिए भर्ती थे। सत्यपाल मलिक पिछले कई वर्षों से गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे और हालात बिगड़ने पर उन्हें 11 मई को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

राजनीतिक सफर की शुरुआत

सत्यपाल मलिक का जन्म 24 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में स्थित हिसावदा गांव में जाट परिवार में हुआ था। उन्होंने मेरठ विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक और एलएलबी की डिग्री प्राप्त की थी। वर्ष 1968-69 में वे मेरठ विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष बने, इसके बाद यहीं से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुवात हुई। 1974-77 के दौरान वे उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य बने, जिससे बड़े राजनीतिक सफर की शुरुआत हुई।

केंद्र और राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका

सत्यपाल मलिक ने 1980 से 1986 तथा 1986-89 के बीच उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सदस्य के तौर पर कार्य किया। इसके अतिरिक्त वे 1989-91 के बीच जनता दल के सदस्य के रूप में अलीगढ़ क्षेत्र से लोकसभा पहुंचे। 1980 में उन्हें चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाले लोकदल ने राज्यसभा के लिए नामित किया, लेकिन 1984 में वे कांग्रेस में शामिल हो गए। बोफोर्स घोटाले के बाद 1987 में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और वीपी सिंह के साथ जुड़ गए।

मलिक ने 1990 में केंद्रीय संसदीय कार्य और पर्यटन राज्य मंत्री के तौर पर भी कार्य किया। बाद में 2004 में वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए और बागपत से लोकसभा चुनाव लड़ा, हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भूमि अधिग्रहण विधेयक से जुड़े अहम संसदीय पैनल का नेतृत्व भी सत्यपाल मलिक ने किया। उनकी रिपोर्ट के बाद सरकार को इस कानून से पीछे हटना पड़ा।

राज्यपाल के तौर पर ऐतिहासिक फैसले

सत्यपाल मलिक अगस्त 2018 से अक्टूबर 2019 तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे। उनके कार्यकाल में ही भारत सरकार ने 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाकर जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा समाप्त किया और राज्य को जम्मू-कश्मीर व लद्दाख नाम के दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया। संयोग से, इस फैसले की छठी वर्षगांठ के दिन ही सत्यपाल मलिक इस दुनिया को अलविदा कह गए। इसके बाद वे गोवा के 18वें और मेघालय के 21वें राज्यपाल भी बने। उन्होंने ओडिशा के राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला।

विचारधारा और विरासत

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के तौर पर मलिक पहले ऐसे नेता थे, जिनकी पृष्ठभूमि पूरी तरह से राजनीति से थी। उनकी बेबाकी, स्पष्टवादिता और किसान समाज के प्रति प्रतिबद्धता के लिए वे जाने जाते रहे। कश्मीर से गोवा और फिर मेघालय के राज्यपाल बनने के बाद उनकी विचारधारा में बदलाव देखने को मिला और वे सरकार की आलोचना करने लगे। 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने रालोद व समाजवादी पार्टी को समर्थन देने की बात कही थी और किसानों के हितों के लिए संघर्ष करने की मंशा भी जताई थी।

अंतिम शब्द

सत्यपाल मलिक एक ऐसे राजनेता थे जिनकी राजनीति की जड़ें गांव-किसान से जुड़ी हुई थीं और जिन्होंने संसद से लेकर राजभवन तक अपने विचारों और फैसलों को स्पष्टता से रखा। उनका संपूर्ण राजनीतिक जीवन देश की राजनीति में साहस, ईमानदारी और प्रतिबद्धता का प्रतीक बना रहेगा।

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